BA Semester-5 Paper-1 Econimics - Economic Growth and Development - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2773
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 5 
रोजेन्स्टीन रोडान का प्रबल धक्का सिद्धान्त

(Rosentein Rodan's Big Push Theory)

प्रश्न- प्रबल प्रयास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

अथवा
आर्थिक विकास में 'बड़े धक्के' का सिद्धान्त क्या है? किन परिस्थितियों में इसका प्रयोग किया जाता है? पूर्णतः समझाइए।

उत्तर-

"बड़ा धक्का अथवा प्रबल प्रयास" सिद्धान्त प्रो० पाल एन० रोजेन्सटीन - रोडान के नाम से संबंधित है। सिद्धान्त यह है कि विकासशील अर्थव्यवस्था में विकास की बाधाओं को पार करने और उसे प्रगति पथ पर चलाने के लिए "बड़ा धक्का” या बड़ा व्यापक कार्यक्रम आवश्यक है, जो न्यूनतम किन्तु उच्च मात्रा के विनियोग के रूप में हो। उसने M. IT. अध्ययन से अपने तर्क पर बल देने के लिए एक 'सादृश्य' प्रस्तुत किया है। “यदि विकास कार्यक्रम को थोड़ा भी सफल बनाना है, तो संसाधनों का एक न्यूनतम स्तर उस कार्यक्रम में लगाना ही पड़ेगा। किसी देश को वृद्धि की आत्मनिर्भरता की अवस्था में लाना ठीक ऐसा ही है, जैसा हवाई जहाज को धरती से हवा में उड़ाना। भूमि पर एक ऐसी क्रांतिक -गति होती है, जिसे विमान को वायुवाहित बनने के लिए धरती पर ही पार करना पड़ता है।"

यह सिद्धान्त कहता है कि “धीरे-धीरे" चलने से अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक विकास पथ पर नहीं लाया जा सकता बल्कि इसके लिए आवश्यक स्थिति यह है कि एक न्यूनतम मात्रा में विनियोग किया जाय। इसके लिए उन बाह्य मितव्ययिताओं को प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है, तो तकनीकी रूप में स्वतन्त्र उद्योगों की एक-साथ स्थापना से उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार विनियोग की न्यूनतम मात्रा में प्रवाहित होने वाली अविभाज्यताएँ तथा बाह्य मितव्ययिताएँ आर्थिक विकास का सफलतापूर्वक सूत्रपात करने के लिए आवश्यक होती हैं।

रोजेन्स्टीन-रोडान ने तीन विभिन्न प्रकार की अविभाज्यताओं तथा बाह्य मितव्ययिताओं का विश्लेषण किया है-

(1) उत्पादन फलन में अविभाज्यताएँ विशेष रूप से सामाजिक उपरि पूँजी की पूर्ति की अविभाज्यता;

(2) माँग की अविभाज्यता;
(3) बचतों की पूर्ति में अविभाज्यता।

आर्थिक विकास लाने में इन अविभाज्यताओं के कार्यों का विश्लेषण इस प्रकार है-

1. उत्पादन फलन में अविभाज्यताएँ - रोजेन्स्टीन-रोडान के अनुसार, आगतों-निर्गतों तथा प्रक्रियाओं की अविभाज्यताओं से बढ़ते प्रतिफल प्राप्त होते हैं। उसका पूर्ण विश्वास है कि संयुक्त राज्य अमरीका में बढ़ते प्रतिफलों ने पूँजी - उत्पादन अनुपात कम करने में काफी भाग लिया था परन्तु वह सामाजिक उपरि पूँजी की अविभाज्यता का, और इसलिए पूर्ति पक्ष में बाह्य मितव्ययिताओं का, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उदाहरण मानता है। सामाजिक उपरि पूँजी की सेवाएँ जिनके अन्तर्गत आधारभूत उद्योग जैसे विद्युत, परिवहन तथा संचार हैं, अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादक हैं और इनके पूरा होने की अवधि लम्बी होती है। इनका आयात नहीं किया जा सकता। उनकी संस्थापनाएँ " काफी प्रारंभिक राशि” के विनियोग की अपेक्षा रखती हैं। इसलिए उनमें कुछ समय तक अप्रयुक्त क्षमता रहेगी। इनमें “विभिन्न सार्वजनिक उपयोगिताओं का अगम्य न्यूनतम उद्योग - मिश्रण होता है, जिसके कारण विकासशील देश को अपने कुल विनियोग 30-40% इन दिशाओं में लगाना पड़ेगा। ' इसलिए उन्हें शीघ्र फलदायक प्रत्यक्षतः उत्पादन विनियोग से पहले होना चाहिए।

इस प्रकार रोडान के अनुसार, सामाजिक उपरि पूँजी को यह चार अविभाज्यताएँ विशिष्टता प्रदान करती हैं।

(1) यह काल में अप्रतिवर्त्य होती है और इसलिए आवश्यक है कि अन्य प्रत्यक्षतः उत्पादक विनियोगों से यह पहले हों।

(2) इनमें एक निश्चित न्यूनतम टिकाऊपन होता है, जो इसे गठीला बनाता है।
(3) इनकी गर्भावधि लम्बी होती है (अर्थात् यह देश में फल देना शुरू करती है)।

(4) इसमें विभिन्न प्रकार की सार्वजनिक उपयोगिताओं का एक निश्चित अह्यस्य उद्योग - मिश्रण होता है। सामाजिक उपरि पूँजी की पूर्ति की ये अविभाज्यताएँ विकासशील देशों में विकास की प्रमुख बाधाएँ हैं, इसलिए शीर्ष - फलदायक प्रत्यक्षतः उत्पादक विनियोगों का मार्ग चलाने के लिए आवश्यक है कि सामाजिक उपरि पूँजी में उच्च प्रारम्भिक विनियोग किया जाना चाहिए।

2. माँग की अविभाज्यता - माँग की अविभाज्यता या पूरकता इस बात की अपेक्षा रखती है कि विकासशील देशों में परस्पर निर्भर उद्योगों की एक-साथ स्थापना हो। व्यक्तिगत विनियोग परियोजनाओं में भारी जोखिम रहता है क्योंकि अनिश्चितता यह होती है कि उनकी वस्तुओं के लिए बाजार होगा भी या नहीं इसलिए विनियोग सम्बन्धी निर्णय परस्पर निर्भर रहते हैं। रोजेन्स्टीन-रोडान ने अपनी बात स्पष्ट करने के लिए जूता फैक्ट्री का प्रसिद्ध उदाहरण दिया है। शुरू में बन्द अर्थव्यवस्था लेकर, मान लीजिए कि एक जूता फैक्टरी में सौ अदृश्य बेरोजगार श्रमिक काम पर लगाये जाते हैं, जिनकी मजदूरी अतिरिक्त आय का निर्माण करती है। यदि ये श्रमिक अपनी समस्त आय उन जूतों पर खर्च करें जिनका वे निर्माण करते हैं, तो जूता बाजार में निरन्तर माँग रहेगी और इस प्रकार उद्योग सफल हो जायेगा। परन्तु वे अपनी समस्त अतिरिक्त आय जूतों पर नहीं खर्च करेंगे क्योंकि मानवीय आवश्यकताएँ अनेक प्रकार की होती हैं। फैक्टरी के बाहर के लोग भी इन अतिरिक्त जूतों को नहीं खरीदेंगे क्योंकि वे दरिद्र हैं और उनके पास इतना धन नहीं है कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकें। इस प्रकार बाजार के अभाव के कारण नई फैक्टरी उजड़ जायेंगी।

इसी उदाहरण को बदलकर प्रस्तुत किया जा सकता है। मान लीजिए कि एक कारखाने में सौ की बजाय सौ 'कारखानों में दस हजार श्रमिक लगे हैं, जो विविध प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करते हैं और उन वस्तुओं के क्रय में अपनी मजदूरी खर्च करते हैं। नए उत्पादक एक-दूसरे के ग्राहक होंगे और इस प्रकार अपनी वस्तुओं के लिए बाजार बना लेंगे। माँग की पूरकता बाजार ढूँढ़ने की जोखिम को घटाती है और विनियोग की प्रेरणा को बढ़ाती है।

दूसरे शब्दों में, विकासशील देशों में बाजार के छोटे आकार तथा विनियोग की कम प्रेरणा को पार करने के लिए, माँग की अविभाज्यता परस्पर निर्भर उद्योगों में एक उच्च न्यूनतम मात्रा के विनियोग को आवश्यक बना देती है।

रोजेन्स्टीन-रोडान का जूता कारखाने का उदाहरण चित्र से समझाया जा सकता है।

 

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ATC तथा MC वक्र एक प्लांट की लागत को दर्शाते हैं, जो कि एक दृष्टतम आकार के प्लांट से कुछ छोटा है। D तथा MR जूता कारखाने की मांग और सीमांत आगम वक्र हैं जब केवल इसी में विनियोग किया जाता है। यह 00, (10,000) जूतों का उत्पादन करती है। जिन्हें OP, कीमत पर बेचती है जो इसकी ATC (औसत कुल लागत ) को पूरा नहीं करती है। अतः कारखाना (abP, हानि उठा रहा है। परन्तु जब एक साथ अनेक विभिन्न उद्योगों में विनियोग किया जाता है तथा जूतों की पूर्ति (Q, Q, (40,000) हो जाती है। अब जूता कारखाना P, RST के बराबर लाभ कमाता है। इसी प्रकार अन्य उद्योग भी लाभ कमाते हैं।

3. बचतों की पूर्ति में अविभाज्यता - रोजेन्स्टीन के सिद्धान्त में बचत की उच्च आय- लोच तीसरी अविभाज्यता है। विनियोग के एक उच्च न्यूनतम आकार के लिए बचतों की उच्च मात्रा की आवश्यकता होती है। दरिद्र विकासशील देशों में इसे उपलब्ध कराना आसान नहीं क्योंकि वहाँ आय का स्तर बहुत कम होता है। इस कठिनाई को पार करने के लिए यह आवश्यक है कि जब विनियोग में वृद्धि होने के कारण आय बढ़े तो बचत की औसत दर की अपेक्षा बचत की सीमांत दर बहुत अधिक हो। परन्तु किसी भी देश में बचत की पिछली औसत दर से बचत की सीमांत दर कभी अधिक नहीं रही।

इन तीन अविभाज्यताओं तथा इनके द्वारा उत्पन्न बाह्य मितव्ययिताओं के दिये हुए होने पर विकासशील देशों में विकास की बाधाओं को पार करने के लिए "बड़ा प्रयास' या न्यूनतम मात्रा का विनियोग आवश्यक है। रोडान लिखते हैं कि “विकास की सफलतापूर्ण नीति के लिए आवश्यक उत्साह तथा प्रयत्न में अन्ततः अविभाज्यता का तत्व होता है।" अकेले तथा हल्के ढंग से धीरे-धीरे चलने का आर्थिक वृद्धि पर पर्याप्त प्रभाव नहीं पड़ता। जब किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के भीतर एक न्यूनतम गति या मात्रा में निवेश होता है, तभी विकास का वातावरण बनता है। इस प्रकार जब विकास की एक बार प्रक्रिया प्रारंभ होती है तो एक साथ ही संतुलित वृद्धि के संबंधों के मार्ग पर क्रियाशील होती है। ये तीन संबंध हैं-

(1) सामाजिक उपरिपूँजी तथा प्रत्यक्षतः उत्पादक क्रियाओं में संतुलन
(2) पूँजी - वस्तु उद्योगों तथा उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में अनुलंब सन्तुलन,

(3) बढ़ रही उपभोक्ता माँग में पूरकता के कारण विभिन्न उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में क्षैतिज संतुलन। इस प्रकार के संतुलित विकास के लिए विस्तृत कार्यक्रम अपेक्षित होता है।

आलोचनाएँ - जकब वाइनर का 'बड़े धक्के' या प्रबल प्रयास के सिद्धान्तों की प्रमुख आलोचनाएँ निम्न हैं-

(1) बाह्य मितव्ययिताएँ - सिद्धान्त द्वारा बतलाया गया है कि 'बड़े धक्के' के उपयोग से बाह्य मितव्ययिताएँ प्राप्त होंगी परन्तु यह मितव्ययिताएँ विदेशी व्यापार से भी प्राप्त की जा सकती है फिर इतनी विशाल मात्रा में विनियोजन करने की आवश्यकता ही क्या है

अनुपयुक्त नीति - बाह्य मितव्ययिताएँ प्रायः लागत अधिकतम करती है, और उत्पादन में विशेष वृद्धि नहीं करती, जिससे इस नीति को विकसित एवं अर्द्ध-विकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता क्योंकि इसके द्वारा मितव्ययिताएँ भले ही प्राप्त हो जायें परन्तु उत्पादन में वृद्धि न संभव होने से इसे उचित नहीं माना जा सकता।

कृषि क्षेत्र में विनियोग की उपेक्षा - "प्रबल प्रयास" सिद्धान्त का एक प्रमुख दोष यह है है कि यह कृषि तथा अन्य प्राथमिक उद्योगों को छोड़कर सभी प्रकार के उद्योगों में पूँजी वस्तुओं, उपभोक्ता वस्तुओं और सामाजिक उपरिव्यय पूँजी में उच्च स्तरीय विनियोजन के महत्त्व पर बल देता है। कृषि अनुस्थापित देशों में सिंचाई, परिवहन सुविधाओं, भूमि सुधारों इत्यादि के माध्यम से कृषि प्रथाएँ सुधारने में पूँजी विनियोग का प्रबल प्रयास उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि अन्य उद्योगों में ऐसी अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की अपेक्षा उनमें विकास करने के बजाय मन्द कर देगी।

स्फीतिकारी दबाव - सामाजिक ऊपरी सुविधाओं पर एक उच्च न्यूनतम मात्रा के विनियोजन का सूत्रपात भी बहुत महँगा होता है फिर उपरिव्यय पूँजी का पूँजी उत्पाद अनुपात अधिक होता है और इसकी परिपक्वता अवधि भी बहुत लम्बी होती है तो अल्प-विकसित देशों के विकास के काम को अधिक कठिन तथा लम्बा बना देता है। इसका कारण यह है कि ऐसे देशों में प्रबल प्रयास के लिए आवश्यक उपरिव्यय पूँजी प्रदान करने के लिए काफी वित्तीय साधन नहीं होते। जिस अवधि में उपरिव्यय पूँजी का निर्माण होता है वही अवधि उपभोक्ता वस्तुओं में कमी के कारण स्फीतिकारी दबावों की भी अवधि होगी। फिर ये स्फीतिकारी दबाव उपरिव्यय पूँजी निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ा देंगे और ऐसे अल्प विकसित देशों के लिए शीघ्र आर्थिक विकास की प्राप्ति कठिन बना देंगे।

प्रशासकीय एवं संस्थापक कठिनाइयाँ - 'प्रबल प्रयास' सिद्धान्त राज्य द्वारा संचालित विनियोजन के विस्फोट पर आधारित है। रोजेन्स्टीन ने बताया है कि अविकसित देशों में अपूर्णतया विकसित मार्केटों की उपस्थिति में कीमत तंत्र बहुत घटिया संकेत प्रणाली है, परन्तु राज्य विनियोजन पर निर्भरता स्वयं अनेक समस्याएँ खड़ी कर देती है। ऐसी अर्थव्यवस्था में प्रशासकीय तथा संस्थागत मशीनरी दुर्बल तथा अदक्ष होती है। विभिन्न परियोजनाओं की योजना बनाने में नहीं बल्कि उनको चालू करने में भी कठिनाई अवश्य उत्पन्न होती है। सांख्यिकी सूचना, तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षित व्यक्तियों और विभिन्न विभागों में तालमेल का अभाव कुछ ऐसी जटिस समस्या है जिसका हल आसान नहीं है। फिर, अधिक अल्पविकसित देशों में मिश्रित अर्थव्यवस्था होती है जहाँ निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र पूरक नहीं होते बल्कि अधिकतर प्रतियोगी होते हैं। इससे पारस्परिक स्पर्धा और सन्देह होता है जो अर्थव्यवस्था की सन्तुलित वृद्धि हेतु अपनाते हैं।

6. ऐतिहासिक तथ्य नहीं है - नितान्त महत्त्वपूर्ण बात है कि रोडान का सिद्धान्त वर्तमान

काल में अल्पविकसित देशों को शीघ्र प्रगति के मार्ग पर चलाने का एक नुस्खा-सा है। इस बात की ऐतिहासिक व्याख्या नहीं है, कि विकास कैसे होता है।

प्रो. हेगन के अनुसार, "ऐतिहासिक दृष्टि" से 'प्रबल प्रयास' की उपस्थिति या अनुपस्थिति कहीं भी वृद्धि की प्रमुख विशेषताएँ नहीं रही है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आर्थिक विकास का आशय तथा परिभाषा कीजिए। आर्थिक विकास की प्रकृति व महत्व का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- आर्थिक विकास की परिभाषाएँ दीजिए।
  3. प्रश्न- आर्थिक विकास की विशेषताएँ बताइए।
  4. प्रश्न- आर्थिक विकास की प्रकृति बताइए।
  5. प्रश्न- आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारको की विवेचना कीजिये।
  7. प्रश्न- आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले आर्थिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- आर्थिक विकास के अनार्थिक तत्वों को समझाइए।
  9. प्रश्न- आर्थिक विकास पर मानवीय संसाधन के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक हैं?
  11. प्रश्न- बढ़ती हुई जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव बताइए।
  12. प्रश्न- आर्थिक विकास के मापक बताइये।
  13. प्रश्न- आर्थिक विकास में संस्थाओं की भूमिका समझाइए।
  14. प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में विदेशी पूँजी की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
  15. प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि की गैर-आर्थिक बाधाएँ कौन-कौन सी हैं?
  16. प्रश्न- आर्थिक पिछड़ापन आर्थिक तथा अनार्थिक कारकों का परिणाम है। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
  17. प्रश्न- आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल की माप किस प्रकार की जाती है?
  18. प्रश्न- गरीबी अथवा निर्धनता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए, भारत में गरीबी के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- विकसित एवं विकासशील देशों की आय एवं सम्पत्ति असमानता में अन्तराल के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- मानव विकास सूचकांक की धारणा किन मान्यताओं पर आधारित है, तथा मानव विकास सूचकांक निर्माण करने के चरणों की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- गरीबी रेखा के निर्धारण का क्या महत्त्व है? तथा भारत में गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों पर प्रकाश डालिए?
  22. प्रश्न- प्रसरण प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
  23. प्रश्न- सापेक्ष गरीबी बनाम निरपेक्ष गरीबी पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- मानव विकास सूचकांक (HDI) क्या है? यह मानव विकास में कितने आयामों को मानता है?
  25. प्रश्न- भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किसने निर्मित किया? भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किन सूचकों द्वारा की जाती है?
  26. प्रश्न- "कोई देश इसलिए गरीब रहता है क्योंकि वह गरीब है। " स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के उपाय बताइये।
  28. प्रश्न- गिनी गुणांक क्या है? गिनी गुणांक कैसे मापा जाता है?
  29. प्रश्न- गिनी गुणांक का महत्व क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- लॉरेंज वक्र क्या है?
  31. प्रश्न- वैश्विक भूख सूचकांक क्या है?
  32. प्रश्न- लिंग सम्बन्धित विकास सूचक क्या है?
  33. प्रश्न- मानव निर्धनता सूचक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  34. प्रश्न- खुशहाली सूचकांक क्या है?
  35. प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) की महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- सतत् विकास की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- आर्थर लुइस द्वारा प्रस्तुत असीमित श्रम आपूर्ति द्वारा आर्थिक विकास के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
  39. प्रश्न- प्रबल प्रयास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध का सिद्धान्त की चित्रात्मक व्याख्या कीजिए।
  41. प्रश्न- संतुलित विकास के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा विकासशील देशों के सन्दर्भ में इसकी सीमाएं बताइए।
  42. प्रश्न- संतुलित विकास के पक्ष में तर्क दीजिए।
  43. प्रश्न- संतुलित विकास के विपक्ष में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिये गये तर्कों का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- असंतुलित विकास को परिभाषित कीजिए।
  45. प्रश्न- असंतुलित विकास के सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा परिलक्षित किये गये विचारों को प्रकट कीजिए।
  46. प्रश्न- संतुलित तथा असंतुलित विकास पद्धति में कौन बेहतर है?
  47. प्रश्न- हर्षमैन के असन्तुलित विकास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए तथा विकासशील देशों के लिए इसकी उपयुक्तता का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- संतुलित एवं असंतुलित विकास की व्याख्या कीजिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए किस प्रकार का विकास अपेक्षित है?
  49. प्रश्न- असंतुलित विकास सिद्धान्त को समझाइये |
  50. प्रश्न- सन्तुलित विकास के सम्बन्ध में रोजेन्स्टीन रोडान के विचार को स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- हर्षमैन द्वारा संतुलित विकास के विचार की किस प्रकार आलोचना की गयी है?
  52. प्रश्न- रोस्टोव की आर्थिक विकास की अवस्थाओं का वर्णन एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  53. प्रश्न- हैरोड तथा डोमर के विकास मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए बताइए कि भारत जैसे अल्पविकसित देश में यह कहाँ तक लागू किया जा सकता है?
  54. प्रश्न- हैरोड द्वारा प्रस्तुत विकास दरों व समीकरण बताइए।
  55. प्रश्न- हैरोड के विकास मॉडल की आलोचनायें बताइए।
  56. प्रश्न- हैरोड का विकास मॉडल डोमर के विकास मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
  57. प्रश्न- हैरोड के विकास प्रारूप का संक्षेप में परीक्षण कीजिए। भारत जैसे विकासशील देशों में यह कहाँ तक लागू होता है?
  58. प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- व्यष्टि स्तर पर नियोजन समझाइए।
  60. प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में छुरी-धार सन्तुलन की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- भारत के जनसंख्या वृद्धि की बदलती हुई विशेषताओं पर एक नोट लिखिए।
  62. प्रश्न- जनांकिकी से क्या अभिप्राय है? जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  63. प्रश्न- जनसंख्या एवं पर्यावरण किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? मूल्यांकन कीजिए।
  64. प्रश्न- "जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में सहायक है अथवा बाधक।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- जनसंख्या का आर्थिक विकास पर तथा आर्थिक विकास का जनसंख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  66. प्रश्न- पर्यावरण क्या है? इसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए?
  67. प्रश्न- जनसंख्या नीति 2000 की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- समावेशी विकास की आवधारणा या महत्व क्या है?
  69. प्रश्न- समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
  70. प्रश्न- समावेशी विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- बाजार विफलता का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं बाजार विफलता के कारण बताइये।
  72. प्रश्न- सरकार की विफलता के कारण बताइए।
  73. प्रश्न- बाजार विफलता को ठीक करने के उपाय बताइये।
  74. प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ क्या है तथा इसके क्या कारण हैं?
  75. प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ बताइए।
  76. प्रश्न- मानव पूँजी क्या है? आर्थिक विकास में मानवीय पूँजी निर्माण की भूमिका एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- "जनसंख्या राष्ट्र के लिये सम्पत्ति है और दायित्व भी।" इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
  78. प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण का क्या अर्थ है तथा मानवीय संसाधनों के विकास में क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
  79. प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- मानवीय साधनों में विनियोग कितने मदों में किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के उपायों पर चर्चा कीजिए।
  82. प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के घटकों तथा अर्धविकसित देशों में मानव पूँजी के निम्न स्तर होने के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
  83. प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण के क्या-क्या मापदण्ड हैं? तथा इसके मापदण्डों का मूल्यांकन कीजिए।
  84. प्रश्न- आर्थिक विकास से आपका क्या तात्पर्य है? किसी विकासशील (अल्पविकसित ) देश की क्या विशेषताएँ हैं?
  85. प्रश्न- भारत जैसे एक अल्पविकसित देश के प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए। भारत के अल्पविकसित होने के प्रमुख कारणों को बताइए।
  86. प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था के मध्य अन्तर स्पष्ट करते हुए आर्थिक विकास के सूचकांकों पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- अल्पविकास के प्रमुख मापदण्ड़ों को स्पष्ट कीजिये।
  88. प्रश्न- अल्पविकास के कारणों को स्पष्ट कीजिये।
  89. प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था में अन्तर स्पष्ट करें।
  90. प्रश्न- क्या भारत एक अल्पविकसित देश है? स्पष्ट कीजिये।
  91. प्रश्न- अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें लिखिये।
  92. प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  93. प्रश्न- मिर्डल के चक्रीय कार्यकरण का सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- विकास के फाई एवं रेनिस सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  95. प्रश्न- फाई- रेनिस सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइए।
  96. प्रश्न- फाई- रेनिस के सिद्धान्त को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  97. प्रश्न- फाई-रेनिस सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
  98. प्रश्न- प्रो. हिणिन्स द्वारा प्रतिपादित औद्योगिक द्वैतवाद सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  99. प्रश्न- तकनीकी द्वैतवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- 'द्वैतवाद' एक विकासशील अर्थव्यवस्था के विकास की किस प्रकार बाधित कर सकती है?
  101. प्रश्न- बोइके का सामाजिक दुहरापन सिद्धान्त समझाइये।
  102. प्रश्न- मिन्ट का वित्तीय दुहरेपन को दूर करने का विकास सिद्धान्त क्या है?
  103. प्रश्न- अल्पविकास का निर्भरतापरक सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- काल्डोर का आर्थिक वृद्धि मॉडल की व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- हैरड की तटस्थ तकनीकी प्रगति को स्पष्ट कीजिए।
  106. प्रश्न- तटस्थ एवं गैर तटस्थ तकनीकी प्रगति क्या है? तटस्थता के सम्बन्ध में हिक्स की धारणा स्पष्ट कीजिए।
  107. प्रश्न- आर्थिक विकास में तकनीकी प्रगति का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  108. प्रश्न- सोलो के दीर्घकालीन वृद्धि मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए [
  109. प्रश्न- सोलो मॉडल की सीमाएँ लिखिए।
  110. प्रश्न- सोलो के वृद्धि मॉडल के अनुसार एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन किन तत्वों पर निर्भर करता है? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- करने से जानकारी (कौशल अर्जन) (Learning By Doing) को स्पष्ट कीजिए।
  112. प्रश्न- तकनीकी प्रगति का अभिप्राय क्या है?
  113. प्रश्न- स्टिग्लिट्ज का असममित सूचना सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- शोध एवं विकास (Research and Development ) पर टिप्पणी कीजिए।
  115. प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में शिक्षा, शोध एवं ज्ञान की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- अन्तर्जात संवृद्धि सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  117. प्रश्न- एक विकासशील अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी की आवश्यकता महत्व तथा खतरों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- बहुराष्ट्रीय निगम से आप क्या समझते हैं? भारत जैसे विकासशील देश में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की क्या भूमिका है?
  119. प्रश्न- विश्व बैंक के क्या कार्य हैं? विकासशील देशों के सम्बन्ध में विश्व बैंक की क्या नीति है?
  120. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना कब हुई थी तथा विकासशील देशों के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की नीतियों की स्पष्ट विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- मौद्रिक नीति के प्रमुख उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
  122. प्रश्न- बहुराष्ट्रीय निगम क्या है? उनके पक्ष एवं विपक्ष में तर्क दीजिए।
  123. प्रश्न- भारत के बाह्य ऋण' समझाइये |
  124. प्रश्न- 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  125. प्रश्न- निजी विदेशी निवेश के विचार से आप क्या समझते हैं?
  126. प्रश्न- आर्थिक विकास में घाटे का वित्त प्रबंधन की भूमिका की व्याख्या कीजिए [
  127. प्रश्न- किसी देश के आर्थिक वृद्धि में विदेशी व्यापार की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- एक विकासशील अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति किस प्रकार कार्य करती है? स्पष्ट कीजिए।
  129. प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों की प्रगति को स्पष्ट कीजिए।
  130. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सफलताओं एवं असफलताओं को स्पष्ट कीजिए।
  131. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत को होने वाले लाभों का विश्लेषण कीजिए।
  132. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
  133. प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
  134. प्रश्न- विश्व बैंक से भारत को क्या लाभ हुए हैं? समझाइये |
  135. प्रश्न- विश्व बैंक की प्रमुख आलोचनायें लिखिये।
  136. प्रश्न- विश्व बैंक के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
  137. प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों का विश्लेषण कीजिए।

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